अष्टावक्र महागीता by ओशो, भाग चार- #34 धार्मिक जीवन - सहज, सरल, सत्य (amazon kindle app

मेरे जीवन के अनुभव से मैं यह कहता हूँ कि ओशो के यह वचन बिलकुल सत्य वचन हैं।

एक साधे सब सधे, सब साधे सब जाय।

मेरे देखे कई ब्राह्मण सब साधने में ही नष्ट हो गए और में गेलिया एक को साध लूँ वही बहुत इस चक्कर में वह सब पा गया, जो सिर्फ़ सुना था कभी प्रवचनों में।

ध्यान से पढ़ना, गुनना और जीवन में भी उतार सके तो धन्यभागी हुए आप।

" अगर तुम सहज बनने लगो तो तुम अचानक पाओगे: परमात्मा को खोजने के लिए कुछ भी नहीं करना पड़ता; तुम्हारीसहजता के ही झरोखे से किसी दिन परमात्मा भीतर उतर आता है। क्योंकि परमात्मा यानी सहजता।

धर्म के इतने जाल की जरूरत नहीं है, अगर तुम सहज हो। क्योंकि सहज होना यानी स्वाभाविक होना, स्वाभाविक होनायानी धार्मिक होना। महावीर ने तो धर्म की परिभाषा ही स्वभाव की है: बत्थु सहावो धम्मो! जो वस्तु का स्वभाव है, वही धर्महै। जैसे आग का धर्म है जलाना, पानी का धर्म है नीचे की तरफ बहना--ऐसा अगर मनुष्य भी अपने स्वभाव में जीने लगे तोबस हो गयी बात। कुछ करना नहीं है। सहज हो गये कि सब हो गया।

और आनंदमग्न जीने का एक ही उपाय है: अपेक्षाएं पूरी करने मत लग जाना। जिनकी तुम अपेक्षाएं पूरी करोगे, उन्हें तुमकभी प्रसन्न न कर पाओगे, यह और एक मजा है। तुम अपने को विकृत कर लोगे और वे कभी प्रसन्न न होंगे। क्योंकितुम्हारे प्रसन्न हुए बिना वे कैसे प्रसन्न हो सकते हैं?

तुम अगर काम कर रहे हो तो एक बात ईमानदारी से समझ लो कि तुम अपने आनंद के लिए कर रहे हो। बच्चों का उससेहित हो जाएगा, यह गौण है, यह लक्ष्य नहीं है। तुम्हारी पत्नी को वस्त्र और भोजन मिल जाएगा, यह गौण है, यह लक्ष्य नहींहै। काम तुम अपने आनंद से कर रहे हो, यह तुम्हारा जीवन है। तुम आनंदित हो इसे करने में। 

और यह तुम्हारी पत्नी है, तुमने इसे चाहा है और प्रेम किया। तुम आनंदित हो इसे प्रेम करने में। बच्चों को प्रेम करने में।"

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"और मैं यह नहीं कहता कि अतीत जन्मों में तुमने कोई पाप किए थे, इसलिए तुम नर्क में हो।

मैं तुमसे कहता हूं: अभी तुम भ्रांतियां कर रहे हो, इसलिए तुम नर्क में हो।

क्योंकि अतीत जन्मों में किए पापों को अब तो दोहराने और ठीक करने का कोई उपाय नहीं। अब तो पीछे जाने की कोई जगह नहीं। वह तो धोखा है।

मैं तो तुमसे कहता हूं: अभी भी तुम वही कर रहे हो।

उनमें एक बुनियादी बात है: सहजता को मत छोड़ना।

कबीर ने कहा है: साधो सहज समाधि भली!

तुम सहज और सत्य और सरल...फिर जो भी कीमत हो, चुका देना। यही संन्यास है।

कीमत चुकाना तपश्चर्या है।

तुम झूठ मत लादना। तुम झूठे मुखौटे मत पहनना।

झेन फकीर कहते हैं: खोज लो अपना असली चेहरा, ओरिजिनल फेस। सहजता असली चेहरा है।

जीसस ने कहा: हो जाओ फिर छोटे बच्चों की भांति! सहजता छोटे बच्चों की भांति हो जाना है।

और वही अष्टावक्र का संदेश है, देशना है, कि जैसे हो वैसे ही, इसी क्षण घटना घट सकती है; सिर्फ एक बात छोड़ दो, अपने को कुछ और-और बताना छोड़ दो।

जो हो, बस वैसे...।

शुरू में निश्चित कठिनाई होगी, लेकिन धीरे-धीरे तुम पाओगे, हर कठिनाई तुम्हें नए-नए द्वारों पर ले आई और हर कठिनाई तुम्हारे जीवन को और मधुर कर गई और हर कठिनाई ने तुम्हें सम्हाला और हर कठिनाई ने तुम्हें मजबूत किया, तुम्हारे भीतर बल को जगाया!

धीरे-धीरे कदम-कदम चल कर एक दिन आदमी परिपूर्ण सहज हो जाता है।

तब उसके जीवन में कोई दुराव नहीं रह जाता, कोई कपट नहीं रह जाता।

इस जीवन को ही मैं धार्मिक जीवन कहता हूं।" (from "अष्टावक्र महागीता, भाग चार - Ashtavakra Mahageeta, Vol. 4: युग बीते पर सत्य न बीता, सब हारा पर सत्य न हारा (Hindi Edition)" by Osho .)

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