Joshuto Thewhitecloud posted: " शिष्य एक मिट्टी का लोंदा हो सके, तो ही गुरु उसे ईश्वर में ढाल सकता है। मैं तुम्हें रोज़ रोज़ समझाऊँगा ओशो का यह यूटूब पर ऑडीओ सुनने लायक़ है। जब तक आप स्वयं के प्रयत्न और अनुभव से आत्मज्ञान को प्राप्त नहीं हो जाते तब तक आप आध्यात्मिक ज्ञान की कित"
ओशो का यह यूटूब पर ऑडीओ सुनने लायक़ है। जब तक आप स्वयं के प्रयत्न और अनुभव से आत्मज्ञान को प्राप्त नहीं हो जाते तब तक आप आध्यात्मिक ज्ञान की किताबों वेदों, उपनिषदों, बुद्ध, Jesus और वेदांत पर कोई टिप्पणी या टीका नहीं लिख सकते। लेकिन आजकल कोई भी व्यक्ति मीडीयम, WordPress इत्यादि पर अपना ज्ञान बाँट रहा है।लेकिन इसमें दूसरे का नुक़सान फिर भी कम होगा, लेकिन उनके पसंद करने से यह व्यक्ति खुद की यात्रा के दरवाज़े को इस जीवन के लिए तो कम से कम वंचित हो ही गया। अब इसके अज्ञान को ज्ञानी होने का प्रमाण पत्र भी मिल गया। दूसरा भी उतना ही अज्ञानी है, और उसके comment को लेखक का like मिल गया तो वह भी अपने को कोई कम अज्ञानी तो नहीं मानता।
यही, बस यही कलियुग की मज़बूत पकड़ का कारण है। यहाँ सब एक दूसरे को ज्ञानी साबित करके खुद को भी ज्ञानी समझेंगे। कलियुग में ज्ञान प्राप्त करने के लिए बहुत तपस्या की आवश्यकता नहीं होगी, लेकिन पकड़ इतनी गहरी होगी की उससे मुक्ति ही सबसे कठिन काम होगा। इसका ज्वलंत उदाहरण ओशो ने दिया। और इसलिए कलियुग में संतों के पास जाने, रहने का उपाय सुझाया है क्योंकि वो तब तक चोंट करते रहेंगे जब तक की तुम अपने आवरण को पहचान नहीं लेते, फिर उसे स्वीकारने में कोई कष्ट नहीं। होता। और तुरंत आध्यात्मिक यात्रा के आप शिखर के क़रीब पहुँच जाते हो। यही कलियुग का प्रसाद है, इसका फ़ायदा नहीं उठाया तो इतने कष्ट उठये सब व्यर्थ गए।
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